Poem

हाय ! विभव के उस पद में
नियति-भीषिका की मुसकान
जान न सकी भोग में भूली-
सी तेरी प्यारी सन्तान।
सुन न सका कोई भी उसका
छिपा हुआ वह ध्वंसक राग-
‘‘हरे-भरे, डहडहे विपिन में
शीघ्र लगाऊँगी मैं आग।’’

रामधारी सिंह दिनकर

Author Bio

रामधारी सिंह 'दिनकर' हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। राष्ट्रवाद अथवा राष्ट्रीयता को

More

This post views is 18

Post Topics

Total Posts

403 Published Posts