Poem क्रान्तिकारी रामधारी सिंह दिनकर क्रान्तिकारी मैं जवानी भर न हो पाया, सिर्फ इस भय से, कहीं मैं भी बुढ़ापे में क्रान्ति में फँसकर न दकियानूस हो जाऊँ। Share