Poem

उर की यमुना भर उमड़ चली,
तू जल भरने को आ न सकी;
मैं ने जो घाट रचा सरले!
उस पर मंजीर बजा न सकी।

दिशि-दिशि उँडेल विगलित कंचन,
रँगती आई सन्ध्या का तन,
कटि पर घट, कर में नील वसन;
कर नमित नयन चुपचाप चली,
ममता मुझ पर दिखला न सकी;
चरणों का धो कर राग नील-
सलिला को अरुण बना न सकी।

लहरें अपनापन खो न सकीं,
पायल का शिंजन ढो न सकीं,
युग चरण घेरकर रो न सकीं;
विवसन आभा जल में बिखेर
मुकुलों का बन्ध खिला न सकी;
जीवन की अयि रूपसी प्रथम!
तू पहिली सुरा पिला न सकी।

रामधारी सिंह दिनकर

Author Bio

रामधारी सिंह 'दिनकर' हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। राष्ट्रवाद अथवा राष्ट्रीयता को

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