Poem

फूँक दे जो प्राण में उत्तेजना

रामधारी सिंह दिनकर

फूँक दे जो प्राण में उत्तेजना,
गुण न वह इस बाँसुरी की तान में;
जो चकित करके कॅंपा डाले हृदय,
वह कला पाई न मैंने गान में।

जिस व्यथा से रो रहा आकाश यह
ओस के आँसू बहाकर फूल में,
ढूँढ़ती उसकी दवा मेरी कला
विश्व-वैभव की चिता की धूल में!

कूकती असहाय मेरी कल्पना,
कब्र में सोये हुओं के ध्यान में;
खॅंडहरों में बैठ भरती सिसकियाँ
विरहणी कविता सदा सुनसान में।

हँस उठी कनक – प्रान्तर में
जिस दिन फूलों की रानी,
तृण पर मैं तुहिन – कणों की
पढ़ता था करुण कहानी।

रामधारी सिंह दिनकर

Author Bio

रामधारी सिंह 'दिनकर' हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। राष्ट्रवाद अथवा राष्ट्रीयता को

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